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13 मार्च की रात्रि 10:44 बाद होलिका दहन व 15 मार्च को सर्वत्र होली:---आचार्य धीरज कुमार पाण्डेय

आचार्य धीरज कुमार पाण्डेय बताते हैं कि होली को लेकर लोगों में संशय की स्थिति बनी हुई है। हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार पूर्णिमा के अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि को मनाते हैं, जबकि होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा को भद्रा रहित मुहूर्त में रात के समय करते हैं।

होलिका दहन मुहूर्त:---13 मार्च दिन गुरुवार को दिन 10:02 से पूर्णिमा तिथि भोग कर रहा है और भद्रा रात्रि 10:44 में खत्म होगा इसीलिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रात्रि 10:44 के बाद होलिका दहन किया जाएगा

होली पर्व:---14 मार्च को दिन 11:12 से प्रतिपदा तिथि आरम्भ हो रहा है जो 15 मार्च को दिन 12:39 तक रहेगा इसीलिए चुकी शास्त्र विदित है कि चैत्र प्रतिपदा में जब सूर्योदय हो तब ही रंगों का त्योहार होली पर्व मनाया जाएगा इसीलिए सर्वत्र हो 15 मार्च को मनाना श्रेष्ठ होगा।

होलिका दहन की पौराणिक कथा:---पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुंचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

वहीं आगे आचार्य धीरज कुमार पाण्डेय बताते हैं कि होली का त्योहार, वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है. यह एक नई शुरुआत का प्रतीक भी है. होली को मनाने के पीछे कई मान्यताएं और कथाएं हैं।

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