पदमा प्रकृति जब अपने चरम सौंदर्य पर होती है, तो वह मन को मोह लेने वाली छटा बिखेरती है।
ऐसा ही अद्भुत नज़ारा इन दिनों पदमा क्षेत्र के जंगलों में देखने को मिल रहा है।
जहां पलाश के फूलों ने अपनी लाल-नारंगी छटा से वनों को एक नए रूप में रंग दिया है। पलाश, जिसे 'जंगल की आग' कहा जाता है, अपने जीवंत रंगों से पूरे परिदृश्य को गर्मजोशी और उल्लास से भर देता है। जब ये फूल खिलते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरा जंगल आग की लपटों में घिरा हो, लेकिन यह आग विनाश की नहीं, बल्कि सौंदर्य और जीवंतता की प्रतीक होती है।
फूलों की यह रंगीन चादर केवल आंखों को ही सुकून नहीं देती, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी अनमोल है। मधुमक्खियां, तितलियां और अन्य परागण करने वाले जीव इन फूलों के रस से अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं, जिससे जैव विविधता को बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा, पलाश के वृक्ष मिट्टी के कटाव को रोकने और पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
भारतीय संस्कृति में भी पलाश का विशेष महत्व है। होली के त्योहार में इसके फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार किए जाते हैं, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, बल्कि त्वचा के लिए भी लाभदायक माने जाते हैं। आयुर्वेद में इसकी छाल, पत्ते और फूलों का उपयोग विभिन्न औषधीय उपचारों में किया जाता है, जो इसे केवल सौंदर्य का प्रतीक ही नहीं, बल्कि आरोग्य का स्रोत भी बनाता है।
हर साल इस मौसम में पलाश के फूलों से सजे जंगल प्रकृति प्रेमियों, फोटोग्राफरों और वन्यजीव शोधकर्ताओं को आकर्षित करते हैं। यह दृश्य हमें याद दिलाता है कि प्रकृति अपनी लय में चलती रहती है और हमें इसे संजोकर रखना चाहिए। इस विरासत को संरक्षित करना न केवल हमारे लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है, ताकि वे भी इस अद्भुत नजारे का आनंद ले सकें और प्रकृति के साथ गहरे संबंध को महसूस कर सकें।